हार और जीत
- Vivek Pathak

- 21 अग॰ 2022
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 23 अग॰ 2022
जब तुम्हारी जीत हो सोचना, हारते तो क्या करते।
क्या होते उदास, खोजते कारण या मढ़ देते हार का दोष किसी पर।
हर कदम पर जीत मिले, ये ना कभी हो पायेगा,
हर कदम पर हार मिले तो भी ना जीवन रुक पायेगा।
हार का अस्तित्व ही, जीत का आधार है।
हार ना हो तो जीत में रस नहीं, और जीत न हो तो समझो खुद को बेबस नहीं।
कमी न आये प्रयासों में अगर, जीतना तो तय है,
बात बस इतनी सी है, जो समझे तो उसकी जय है।
जीत का जश्न है जरूरी मग़र, शामिल हो उसमें ज़िक्र,
हारे के प्रयासों का भी, तो ही जीत असली कहलाये।
हर किसी की जीत में शामिल होती हार किसी की,
पर जीत कर भी हारे को जो गले लगाय,
तो ही जीत असली कहलाये।
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














टिप्पणियां