अंतर का ख़ज़ाना
- Vivek Pathak

- 21 दिस॰ 2024
- 1 मिनट पठन
न जाने क्यों हर तरफ़, अब कमीं नज़र आती है,
न जाने क्यों हर तरफ़, अब कमीं नज़र आती है,
जब से मिली है ख़बर अंतर के ख़ज़ाने की,
बाहर के सोने की चमक,
अब और फीकी होती जाती है l -2
ऐसा नहीं, ऐसा नहीं,
कि दौलत ए ज़माने का कोई मोल नहीं l
पर इसके लिए ख़ुदी को खोते जाना !!
पर इसके लिए ख़ुदी को खोते जाना !!
ज़माने में मुझे अब, हर तरफ़, ग़मी नज़र आती है l
ज़माने में मुझे अब, हर तरफ़, ग़मी नज़र आती है l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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