अकेले में
- Vivek Pathak

- 10 जन॰
- 1 मिनट पठन
थोड़ा रो लिया करो अकेले में,
थोड़ा रो लिया करो अकेले में,
दुनिया की भाग दौड़ में, कहीं खो ना दो ख़ुद को, कभी तो खो लिया अकेले में l
थोड़ा रो लिया करो अकेले मेंl
बनावटी और मतलबी आंसूओं को छोड़कर,
पश्चाताप में,
थोड़ा तो भिगो लिया करो ख़ुद को, अकेले मेंl
मन का वन कहीं बंजर ना हो जाए,
मन का वन कहीं बंजर ना हो जाए,
अश्क़ों के जल से,
थोड़ा तो सींच लिया करो इसको, अकेले में l
थोड़ा रो लिया करो अकेले में,
थोड़ा रो लिया करो अकेले में l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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