कुछ ख़ास नहीं
- Vivek Pathak

- 25 जून
- 1 मिनट पठन
कहने को ज़िंदगी में है बहुत, पर कुछ ख़ास नहीं, -2
जी तो रहें हैं सब, पर जीने में वो बात नहीं l
यूँ तो अहसास से भरे हैं सब, -2
पर होते किसे के पूरे, जज़्बात नहीं l
और जब चुभता है कमीं का शूल, तो रोते हैं, -2
कि अपना लिया क़र्ज़ा है, जो गए हैं चुकाना भूल l
दौलत ही सबकुछ है, ये सही नहीं, -2
पर ये कहना भी मुक़म्मल तभी, जब वो पास है l
जो नहीं मिला, उसके पीछे ही भागती है दुनिया, -2
थोड़ा रुके तो जाने ज़माना,
कि जो मिला है वही ख़ास है l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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