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कुछ ख़ास नहीं

कहने को ज़िंदगी में है बहुत, पर कुछ ख़ास नहीं, -2

जी तो रहें हैं सब, पर जीने में वो बात नहीं l


यूँ तो अहसास से भरे हैं सब, -2

पर होते किसे के पूरे, जज़्बात नहीं l


और जब चुभता है कमीं का शूल, तो रोते हैं, -2

कि अपना लिया क़र्ज़ा है, जो गए हैं चुकाना भूल l


दौलत ही सबकुछ है, ये सही नहीं, -2

पर ये कहना भी मुक़म्मल तभी, जब वो पास है l


जो नहीं मिला, उसके पीछे ही भागती है दुनिया, -2

थोड़ा रुके तो जाने ज़माना,

कि जो मिला है वही ख़ास है l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

 
 
 

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