top of page
खोज करे

जागो जागो जागो

  • लेखक की तस्वीर: Vivek Pathak
    Vivek Pathak
  • 31 अक्टू॰ 2022
  • 1 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 31 अक्टू॰ 2022

पाके भी अनेक लाभ, महिमा वृक्ष की नकारे तू l

जीवन आवश्यक नीर जानके भी, जलश्रोत को उजाड़े तू l

सूर्य से है जो प्राप्त ऊर्जा, व्यर्थ की तपन उसे कहे तू l

धरती की करुणा का न कोई मूल्य तुझे,

मिट्टी को धूल कह ठुकराये तू l

वायु जिससे स्वास है, जीवन का आभास है,

उसके मूल्य को भी ना पहचाने तू ।


जो प्राप्त है अमूल्य है, चुका सकोगे ना कभी,

इतना इसका मूल्य है l


प्रकृति प्रदत्त हैं हाँ ये पंच-तत्व हैं,

जिससे बना है तू और सब संसार है l

इनको जो मिटायेगा, तो फिर कहाँ जायेगा,

वंश के विनाश का कारण स्वयं को पायेगा l


ऐसा न हो कि, फिर कभी ना भोर हो,

जागो जागो जागो इससे पहले, बहुत देर हो,

जागो इससे पहले, बहुत देर हो l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक



 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page