जागो जागो जागो
- Vivek Pathak

- 31 अक्टू॰ 2022
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 31 अक्टू॰ 2022
पाके भी अनेक लाभ, महिमा वृक्ष की नकारे तू l
जीवन आवश्यक नीर जानके भी, जलश्रोत को उजाड़े तू l
सूर्य से है जो प्राप्त ऊर्जा, व्यर्थ की तपन उसे कहे तू l
धरती की करुणा का न कोई मूल्य तुझे,
मिट्टी को धूल कह ठुकराये तू l
वायु जिससे स्वास है, जीवन का आभास है,
उसके मूल्य को भी ना पहचाने तू ।
जो प्राप्त है अमूल्य है, चुका सकोगे ना कभी,
इतना इसका मूल्य है l
प्रकृति प्रदत्त हैं हाँ ये पंच-तत्व हैं,
जिससे बना है तू और सब संसार है l
इनको जो मिटायेगा, तो फिर कहाँ जायेगा,
वंश के विनाश का कारण स्वयं को पायेगा l
ऐसा न हो कि, फिर कभी ना भोर हो,
जागो जागो जागो इससे पहले, बहुत देर हो,
जागो इससे पहले, बहुत देर हो l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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