जीवन और जोखिम
- Vivek Pathak

- 25 अप्रैल
- 1 मिनट पठन
जिसमें नहीं ज़िगर, जो ले सके न जोखिम अगर,-2
जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l
जो सोचे कि ग़म मिलेंगें तो,-2
क्यों चला जाए उस राह पर,
जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l
मिलेगा मंज़िल को पाके भी वो सुकून, पता नहीं,-2
कायर ही होगा, जो चलना छोड़ दे राह पर l
दामन बचा के चलते हैं जो, दुनिया के ग़मों से अपना,
मिलती उनको बदनसीबी, हर कदम हर राह पर l
जिसमें नहीं ज़िगर, जो ले सके न जोखिम अगर,
जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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