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जीवन और जोखिम

जिसमें नहीं ज़िगर, जो ले सके न जोखिम अगर,-2

जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l


जो सोचे कि ग़म मिलेंगें तो,-2

क्यों चला जाए उस राह पर,

जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l


मिलेगा मंज़िल को पाके भी वो सुकून, पता नहीं,-2

कायर ही होगा, जो चलना छोड़ दे राह पर l


दामन बचा के चलते हैं जो, दुनिया के ग़मों से अपना,

मिलती उनको बदनसीबी, हर कदम हर राह पर l


जिसमें नहीं ज़िगर, जो ले सके न जोखिम अगर,

जीना तो दूर, मरना भी हो जाता है उसका दूभर l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

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