जीवन और फ़क़ीर
- Vivek Pathak
- 8 दिस॰ 2024
- 1 मिनट पठन
भोर की लालिमा में, किसी चूल्हे से,
उठती धुँए की एक लक़ीर l
भोर की लालिमा में, किसी चूल्हे से,
उठती धुँए की एक लक़ीर l
निकल पड़ा हो जैसे, होते सुबह एक फ़क़ीर l
निकल पड़ा हो जैसे, होते सुबह एक फ़क़ीर l
मिलेगी आज रोटी, ये तो तय नहीं l
मिलेगी आज रोटी, ये तो तय नहीं l
पर संभावनाएँ मर जाएँगी, पर संभावनाएँ मर जाएँगीl
अगर सोता रहे फ़क़ीर l
पर संभावनाएँ मर जाएँगी, अगर सोता रहे फ़क़ीर l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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