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जीवन और फ़क़ीर

भोर की लालिमा में, किसी चूल्हे से,

उठती धुँए की एक लक़ीर l

भोर की लालिमा में, किसी चूल्हे से,

उठती धुँए की एक लक़ीर l


निकल पड़ा हो जैसे, होते सुबह एक फ़क़ीर l

निकल पड़ा हो जैसे, होते सुबह एक फ़क़ीर l


मिलेगी आज रोटी, ये तो तय नहीं l

मिलेगी आज रोटी, ये तो तय नहीं l


पर संभावनाएँ मर जाएँगी, पर संभावनाएँ मर जाएँगीl

अगर सोता रहे फ़क़ीर l


पर संभावनाएँ मर जाएँगी, अगर सोता रहे फ़क़ीर l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

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