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जान रहा हूँ जग को

अपडेट करने की तारीख: 14 फ़र॰

जितना जान रहा हूँ जग को, उतने बंधन छूट रहे l

जितना जान रहा हूँ जग को, उतने बंधन छूट रहे l


पाना-खोना, जीना-मरना, पाना-खोना, जीना-मरना,

सब गुब्बारे फूट रहे l


कब छूटूँगा जग कोल्हू से, कब छूटूँगा जग कोल्हू से,

चलते चलते पग टूट रहे l


हो रहा अंदर से ख़ाली, हो रहा अंदर से ख़ाली,

सब भ्रम मेरे टूट रहे l


जितना जान रहा हूँ जाग को, उतने बंधन छूट रहे l


तेरी साँस तेरा मैं, तेरी साँस तेरा मैं,

मेरा कुछ उपयोग कर l

थोड़े आँसू पौंछ सकूँ, ख़ुद के चाहे सूख रहे l

थोड़े आँसू पौंछ सकूँ, ख़ुद के चाहे सूख रहे l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

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