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तन्हा रहना सीख लो

तन्हा रहना सीख लो, तन्हा रहना सीख लो,

कि हमेशा कोई साथ न होगा l

हर रिश्ता है कुछ पल का ही,

हर रिश्ता है कुछ पल का हीl


और अलग होने के हैं सौ बहाने ।

कभी पैसा, कभी सोच,

कभी किस्मत तो कभी मौत, ज़ुदा कर ही देती है l


भीड़ कितनी भी क्यों न हो, यहाँ सभी अकेले हैंl -2

सीख लो तन्हा रहना, भीड़ में भी, तो है बेहतर l


हो पाए ग़र ये तो फिर क्या बात है,

कि तुम किसी के आंसूँ पोंछो,

किसी की हँसी का बहाना बनो l

गिरते का सहारा बनो, किसी का हाथ थामों l

शर्त बस इतनी सी है कि,

बदले में क्या मिलेगा, उसे दिल से मिटाते चलो l -2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक



 
 
 

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