तबाह हूँ मैं
- Vivek Pathak

- 24 मई
- 1 मिनट पठन
अपनी कहानी का इकलौता गवाह हूँ मैं,
सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ, कि कितना तबाह हूँ मैं l -2
जहाँ को जीतने का फ़न, खोया मैंने,
हर क़दम पे, बस हारा हूँ मैं l -2
इक तू बचा है, जो अब भी मेरे पास है,
जीते रहने की, यही बस इकलौती आस है l -2
तू मिलेगा या नहीं ये तो मुझे पता नहीं,
चलते रहना है बस, जब तक तन में साँस है l -2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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