top of page
खोज करे

तुम्हारा साथ

यौवन की धूप में युगल, प्रेम रत तो रहते ही हैं l-2


पर तुम्हारे माथे की सफ़ेदी में भी, 

प्रेम कम नहीं और बढ़ गया है l

जीवन की तपती धूप से, 

सावन की पहली बयार हो गया है l


रति से निवृत्ति की ये यात्रा,

हर किसी को नसीब नहीं होती l-2

पर तुम्हारे साथ ये सफ़र, आसान हो गया है ll-2


कहते हैं अंत में हर कोई, अकेला ही रहजाता है l

जैसे सुगंध को बिखेर के, पुष्प सूख जाता है ll-2 


सूखे पुष्प में बीज का, तुम्हारे साथ से, 

मैं सृजन बन जाता हूँ ll-2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page