top of page
खोज करे

तेरे बिना

तूने कहे सौ फ़साने ए ख़ुशनवर,

जिसने दिया दर्द ए दिल, एक नज़राना उसके लिए l


कि तुझसे बिछड़कर मरना गँवारा न हुआ,

तेरे बिना जीने को, मैंने ज़िन्दगी नाम रख दिया l

जिससे भी जुड़ा, उनमें तुझको ही खोजा,

यूँ टूटते रहने को, मैंने ज़िन्दगी नाम रख दिया l


चाहत का सागर दिल में ही रहा, बिन बरसे बादल की तरह, भटकते रहने को, मैंने ज़िन्दगी नाम रख दिया l


तुझको पाना ग़र होती मेरी मंज़िल,

तो मेरा हश्र यूँ न हुआ होता, बस चलते रहने को,

मैंने ज़िन्दगी नाम रख दिया l


तू नहीं, अब तेरा ख्वाब भी नहीं, दर्द ए दिल को जीने की वजह कर दिया, तेरे बिना जीने को,

मैंने ज़िन्दगी नाम रख दिया l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page