top of page
खोज करे

न होना ही होना है

तपस्वियों को देखा, त्यागिओं को जाना, 

ज्ञानिओं को समझा, भक्ति को माना l


क्या करूँ जिससे उसको जान पाऊँ,

कैसे उसको महसूस कर पाऊँ,

आख़िर क्या करूँ कि उसको पा जाऊँ l


जैसे हनुमत जपते हर क्षण राम को,

जैसे मीरा भजती प्यारे घनश्याम को,

जैसे नंदी करते प्रतीक्षाभोलेनाथ की l

बस वैसे ही जप पाऊँ मैं, एकबार पूरी तरह से राम को l

बस वैसे ही भज पाऊँ मैं, एकबार मीरा सा घनश्याम को l

बस वैसे ही धार पाऊँ नंदी सा धैर्य एकबार,


और मिट जाऊँ, मिट जाऊँ मैं l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक





 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page