नहीं चाहिए मोक्ष मुझे
- Vivek Pathak

- 9 जून
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 9 जून
दुःख है - धोखा है - आँसू हैं, भूख है, बीमारी है, -2
सारी दुनिया, ये सारी दुनिया, अकेलेपन की मारी है l
और उसके ऊपर छाई, मतलबीपन की ख़ुमारी है l
मेरा-मेरा, कर-कर के,-2 सबने गुज़ारी उम्र सारी है l
नहीं चाहिए मोक्ष मुझे, नहीं चाहिए मोक्ष मुझे,
आना चाहूँ, लौट-लौट कर बारंबार l
कि कोई भूखा है, कोई डरा है, -2
कोई रोता है, है किसी पे क़र्ज़ का अम्बार l
आख़िर रह ही जाते हैं सब, अकेले हर बार,
अंधेरे में, कोई तो हो इन सब के साथ l -2
चाहता हूँ, पौंछना आँसू हर बार l
चाहता हूँ, बढ़ाना हाथ हर बार l
चाहता हूँ, लगाना गले हर बार l
बस इसलिए नहीं चाहिए मोक्ष मुझे,
आना चाहूँ, लौट-लौट के बारंबार l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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