फंसे रहना कब तक
- Vivek Pathak

- 21 अग॰ 2022
- 1 मिनट पठन
फंसे रहना कब तक
खुशी के कुछ पलों की दौड़ में,
दूसरोँ से आगे बढ़ जाने की होड़ में,
ख़ुद को साबित करने के जोड़ में,
फंसे रहना कब तक
अपनों से छूट जाने के मोड पर,
सपनों के टूट जाने की भोर पर,
सब कुछ खो देने के बोध पर,
फंसे रहना कब तक
कब तक फंसे रहना भोग निद्रा भय और मैथुन में,
कब तक फंसे रहना जीवन को अनदेखा करते रहने में,
कब तक डूबे रहना परेशानियों के जल में,
खुद को खो देना ढूंढते समस्याओं के हल में,
एकदम रुक जाने के पल में,
भी अगर नहीं समझा तो यूँही बहजाएगा फिर गंगा जल में।
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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