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ब्राह्मण होना

जन्मा तो हूँ श्रेष्ठ कुल में,

पर मेरा श्रेष्ठ होना अभी बाक़ी है l


एक-दो से तो छूटा नहीं पूरी तरह,

अभी तो कई दोष मुझमें बाक़ी हैं l


चलना तो ठीक से, आरम्भ ही नहीं हुआ,

पहुँचने का भ्रम भटकाता है, पहुँचने की योग्यता, अर्जित करना अभी बाक़ी है l


और दया-त्याग, ज्ञान-भक्ति, क्रोध रहित संयम की वो स्थिती, कहते जिसे होना ब्राह्मण,

ब्रह्म का अंश तो हूँ मैं, पर होने के प्रति, जागना अभी बाक़ी है l


कहने को तो हूँ मैं ब्राह्मण,

पर पूरी तरह होना अभी बाक़ी है l

मेरा ब्राह्मण होना अभी बाक़ी है l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

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