मृत्यु की महक
- Vivek Pathak

- 23 अग॰ 2022
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 31 अग॰ 2022
तपते जीवन के रेगिस्तान से गुजरते कुछ भ्रम,
कष्ट, थकान के साथ मरुउद्यान के पल भी मिलेl
जीवन के पथरीले कांटेदार जंगल में,
सुगंधित पुष्पों के आल्हादित उपवन भी मिलेl
भय, अनिश्चिता और असफलता के खारे सागर के छोर पर, मीठे रस से पानी के झरने भी मिलेl
मंझधार में हाथ छोड़ने वाले तो थे ही,
आँखों में प्रेम के आंसू लिए बाँहों के सहारे भी मिलेl
लम्बी इस यात्रा में अपनों का साथ छूटा,
तो कुछ नवीन प्यारे भी मिलेl
धरा की तपिश पर सावन की पहली बौछार सी,
संतुष्टि की वो सौंधी महकl
जीवन के उतार चढ़ाव से तरावट देती, मृत्यु की वो महकl
जीवन के हर पल को सार्थक करती, मृत्यु की वो महकl
धन्यभागी हूँ कि जीवित हूँ, और है साँसों में, हर धड़कन में, मृत्यु की वो महक, मृत्यु की वो महकll
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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