मेरी पुकार
- Vivek Pathak

- 16 अग॰
- 1 मिनट पठन
ऐसा नहीं कि न पुकारूँ, तो आप सुनते नहीं,
बिन मांगे भी दिया है, बहुत कुछ हर बारl
पहले धो तो लूँ कर्मों के दाग़, एक बार,
पहले लीप तो लूँ अपने आँगन को,
कर लूँ स्वच्छ इसे एक बार l
करता रहा त्रुटियां जो बारम्बार,
पहले हो तो लूँ मुक्त, उनसे एक बार l
फिर पुकारूँगा आपको ‘माधव’, मैं द्रौपदी कि भाँति,
कि हे! ‘गोविन्द’, आपके सिवा मेरा कोई नहीं,
और आप आओगे, इसमें कोई संशय भी नहीं l
पहले भजतो लूँ आपको श्रीदामा की भाँति,
एसे एक बार, कि रह न जाए माँगने को कुछ भी,
जो आप मिलो एक बार l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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