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खोज करे

मैं कौन हूँ

प्रारब्ध की मिट्टी की मूरत या कर्मों का बंधक,

प्रयासों का परिणाम या असफलताओं का बोझ।

आवश्यकताओं का चिर याचक या करुणामयी दानी,


मैं कौन हूँ

दुःख का खारा आंसू या सुख के सावन की बौछार।

ज्ञान का खोजी या भक्तिमय मीरा,

अंधकार में आशा की किरण, डूबते का सहारा या मँझदार में बिन-पतवार नैया।


कौन हूँ मैं ना जाने कौन हूँ मैं।।

सदगुरू कृपा से गढ़ रहा व्यक्तित्व हूँ शायद,

प्रकाशमय सुगंध गुरु की उठती है मेरी मिट्टी से शायद।


सागर में खोके सागर हो जाना, मीठे से खारा और फिर मीठा हो जाना।।


शायद मैं जल हूँ, शायद मैं जल हूँ, जिसका काम है बहते जाना बहते जाना।।


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

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