मैं चाहता हूँ
- Vivek Pathak

- 21 अग॰ 2022
- 1 मिनट पठन
लगाना चाहता हूँ उनको गले, जिनमें दूसरों ने केवल तन देखा
बैठना चाहता हूँ उन सबके करीब, जिनका न कभी किसी ने मन देखा।
मुस्कुराना चाहता हूँ उन सबके साथ, जिनका न किसने कभी ग़म देखा।
ठहरना चाहता हूँ उन सबके साथ, जिन्होंने फ़ुर्सत न एक पल देखा।
उड़ना चाहता हूँ उनके साथ, जिन्होंने न कभी आसमां देखा।
किसी ने तन किसी ने धन तो किसी ने मतलब देखा,
वो भी एक इंसान है उसका दर्द किसी ने देखा।
दर्दमंदों और ज़ईफों से मुहब्बत का सिला अब कुछभी हो, आखिरी सांस तक दिल उनके लिए रखना चाहता हूँ।
जानता हूँ पड़ेगा फर्क न इन लब्जों का किसी पर,
बस अपनी बात कहकर सुख से मारना चाहता हूँ।
इंसान हूँ इंसान होने का अहसास, हर इंसान में जगाना चाहता हूँ।
बस यही मैं चाहता हूँ बस यही मैं चाहता हूँ।
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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