top of page
खोज करे

याद की जायदाद

अपडेट करने की तारीख: 3 नव॰

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2

कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया,

और पापों से तो सना हूँ मैं,-2

कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l


सब.. सब.. सब आ के चला जाता है,

सब आ के चला जाता है l

एक ‘उसकी याद’ है, की आके जाती नहीं l -2


और ‘उसकी याद’ में कुछ ऐसी बात है ‘विवेक’,-2

कि दौलत-शौहरत तो एक तरफ़, जश्न-ए-जन्नत और चाहत-ए-जिस्म भी फ़ीका लगता है l

और कमाल तो ये है कि,

जायदाद-ए -याद कभी मिटती नहीं,

बाक़ी सब मिट जाता है l -2


और यही वो दौलत है, जो साथ जाती है l

बस यही वो दौलत है, जो साथ जाती है l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 
इल्म है मुझे

ये जो लोग, रिश्ते-नातों, दौलत-ओ-शौहरत और तमाम दुनिया को, जीने का सामान समझ रहे हैं l नादान हैं, अपनी ही क़ब्र, ख़ुद खोद रहे हैं l नादान...

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page