याद की जायदाद
- Vivek Pathak

- 31 अक्टू॰
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 3 नव॰
कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2
कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया,
और पापों से तो सना हूँ मैं,-2
कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l
सब.. सब.. सब आ के चला जाता है,
सब आ के चला जाता है l
एक ‘उसकी याद’ है, की आके जाती नहीं l -2
और ‘उसकी याद’ में कुछ ऐसी बात है ‘विवेक’,-2
कि दौलत-शौहरत तो एक तरफ़, जश्न-ए-जन्नत और चाहत-ए-जिस्म भी फ़ीका लगता है l
और कमाल तो ये है कि,
जायदाद-ए -याद कभी मिटती नहीं,
बाक़ी सब मिट जाता है l -2
और यही वो दौलत है, जो साथ जाती है l
बस यही वो दौलत है, जो साथ जाती है l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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