top of page
खोज करे

शिव आरहे हैं मेरे पास

  • लेखक की तस्वीर: Vivek Pathak
    Vivek Pathak
  • 5 अप्रैल 2024
  • 1 मिनट पठन

जितना दुनिया मुझे ठुकरा रही है,

जितना माया मुझे उलझा रही है,


जितना कम हो रहा है व्यर्थ के संबंधों से लगाव,

जितनी कम हो रही है भौतिकता की मिठास,


उतना शिव आ रहे हैं मेरे पास l

उतना शिव आ रहे हैं मेरे पास l


तेरा बोध ऐसी पूँजी है, तेरा बोध ऐसी पूँजी है,

जिसपर गँवा सकता हूँ मैं अपनी हर आस l


और, बुद्धि जनित शंका अब हो रही है निराश,

हर प्रश्न, हर विरोध, लारहा है मुझे शिव के और पास l


शिव आ रहे हैं मेरे पास l शिव आ रहे हैं मेरे पास l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page