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श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध,

जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l


होते सभी बंधन जहाँ राख़,

टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़,

है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l


मरके तो सबको जाना है वहाँ,

जीतेजी बिताओ कुछ पल वहाँ, तो उतरे ज्ञान विशुद्धl


हो रहा जिसके दर्शन से मैं प्रबुद्ध,

और हो रहा जिसके दर्शन से मैं प्रबुद्ध,


हे! श्मशान, तुमसा गुरु कौन इस जग में l

हे! मृत्यु, तुमसा गुरु कौन इस जग में l

हे! मृत्यु, तुमसा गुरु कौन इस जग में l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


 
 
 

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