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संभव है

नहीं पैसा आवयश्क इतना जीवन के लिए, पर जी रहे पैसों के लिये लोग

दौड़े जा रहे दिनरात पर, है पहुंचना कहाँ नहीं जानते लोग

और पाने की दौड़ में, प्राप्त का उपयोग नहीं कर पाते लोग

क़्या है जीवन? क्योँ है जीवन? आखिर है करना क्या?

नहीं जानते लोग


बल मिले तो कमज़ोर को सताते लोग

धन का दुरूपयोग कर, दान के अवसर खोते लोग

ज्ञान के मद में चूर, फिर भी ज्ञानी कहलाते लोग

बिना समझे समर्पण की गहराई, भक्ति में इठलाते लोग

प्रवृतिओं से होकर ग्रसित, जीवन व्यर्थ यूँ ही गंवाते लोग


संभव है परेशनियों में भी ख़ुशी से झूमते जाना

संभव है बिना अपेक्षा प्रेम कर पाना

संभव है बिना अपेक्षा सहायता कर पाना


हाँ संभव है भय से मुक्ति पाना

हाँ संभव है जग से पार पाजाना

हाँ संभव है ख़ुदको पाजाना



विवेक गोपाल कृष्ण पाठक










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