top of page
खोज करे

'सबब ए जिन्दगी'

है दुःख बहुत, ग़मगीन सारे हैं।

कुछ हैं परेशां साथ किसी के, और कुछ बे सहारे हैं।

हैं सुखी अपनों के साथ कमी में भी कुछ-2,

और कुछ महलों में भी पाते दुःख  सारे हैं।

कोई भूख से सो नहीं पता-2,

और किसी को सुहाते नहीं पकवान सारे हैं।

कहीं तन ढकने को कपड़ा नहीं-2,

कहीं नखरे फ़ैशन के हजारों हैं।

हैं दुःख बहुत, ग़मगीन सारे हैं-2

कुछ और ही है 'सबब ए ज़िन्दगी' शायद-2,

फिर न जाने क्यों आते और जाते हैं।

है दुःख बहुत, ग़मगीन सारे है-2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
स्वयं के सत्य का अनुभव

बहुत कष्ट हैं इस दुनियाँ में, किसी के पास कम या ज्यादा नहीं, हर एक के पास है अपना अपना, देखो जब भी मजबूर या लाचार को, बाँट लो जो भी बाँट...

 
 
 
करुणा

तन पे वो ज़ख्मों के नक्श, उनसे बहता खून। सर्द रातों में सोने का तो क्या? रोटी का न हो ठिकाना और उसपे तन्हा तन्हा जीने को मजबूर। नंगे पैर,...

 
 
 
इत्र ए ज़िन्दगी

जिसके सामने आईना रखा, वो ही हमसे रूठ गया, हम ज़माने से अलग हुए और ज़माना हमसे टूट गया। मैंने कई बार खुद को टूटा, बिखरा और तन्हा पाया, जो भी...

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page