साधु के आँसू
- Vivek Pathak

- 15 फ़र॰
- 1 मिनट पठन
छोड़कर दुनिया के सब रिश्ते नातों को,
छूटकर माया के मोह जाल से, चल पड़ा है वो l
उसको पाने जो उसके ही भीतर है,
अंतर की यात्रा पर निकल पड़ा है वो l
बंधन टूटे पर, अहसास अभी बाक़ी है,
सारी खटास आंसूओं में बहती जाती है l
अकेलेपन से एकांत की ओर चल पड़ा है वो l
कोई नहीं रहा उसका,
नदी सा सागर की ओर बह चला है वो l
सच्चे साहसी की सुरक्षा करना हे शिव !!
टूटकर बिखर न जाए, पोषण व दुलार करना हे माँ !!
नष्ट हो प्रारब्ध, हो मार्ग प्रशस्त, और अब जो बहें साधु की आँखों से, वो हों तेरे प्रेम के आँसू, वो हों तेरी भक्ति के आँसू, पूर्ण समर्पण के हों साधु के वो आँसू l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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