हृदय से काग़ज तक
- Vivek Pathak

- 23 अक्टू॰ 2024
- 1 मिनट पठन
उसने कहा, ऐसा क्या कर लिया तुमने,
शब्द ही तो हैं उतार लिए कागज़ पर l
मैं बोला, प्रसाद और भोजन में अंतर समझते हो l
आँसू जब भी निकलते हैं, हर बार नमकीन होते हैं,
ख़ुशी के हैं या दुःख के, अंतर समझते हो l
सर के झुकने में हार है या सज़दा, अंतर समझते हो l
लब्ज़ों में कोस भी सकते हैं, गाली भी दी जा सकती है,
लेकिन, हृदय को कागज़ पर रख पाना,
इसमें अंतर समझते हो l
कहते हो, शब्द ही तो हैं उतार लिए कागज़ पर,
तुम अंतर नहीं समझते हो ल
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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