है स्वीकार
- Vivek Pathak

- 19 सित॰ 2024
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 24 नव॰ 2024
तुझसे मिली खुशियाँ क़ुबूल हैं जब,
तो फिर ग़म से भी, नहीं एतराज़ l
आती है ख़ुशबू गुल से जब,
तो शूल से जो दर्द मिले, वो भी स्वीकार l
उतरती रौशनी से जगमग हूँ जब,
तो अमावस की, रात भी स्वीकार l
हँसी का खज़ाना, जीभर मिला जब,
तो आँसुओं से भरी, मुफ़लिसी भी स्वीकार l
मिली है दृष्टि, सब साफ़ दिखता है जब,
तो माया की, धुंध भी स्वीकार l
जो भी मिला है अमृत, तुझसे ही मिला है,
तो अपने कर्मोँ का, हलाहल भी अब स्वीकार l
तूने ही सम्हाला हुआ है सब, जानता हूँ मैं अब,
तू ही है मुझमें भी, तेरा मुझमें यूँ होना, अब हृदय स्वीकार lअब मैं भी हूँ सरोबार l अब मैं भी हूँ सरोबार l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक














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