top of page
खोज करे

ख़ुद से बात करो

  • लेखक की तस्वीर: Vivek Pathak
    Vivek Pathak
  • 15 अक्टू॰ 2023
  • 1 मिनट पठन

अपनों को जाना, परायों को समझा-2

पैसों में उलझा, कामनाओं में बीधा,

रहा जीवन भर आपाधापी में l


फिर भी, ख़ुद से न की, कभी बात लेकिन l


दूसरों से छीनकर अपनों पर लुटाना, 

समझ न आई ये बात लेकिन l

कुछ भी पा लो, कमी तो रह ही जाती है,

दौड़ धूप में व्यर्थ जीवन गँवाया l


फिर भी, ख़ुद से न की, कभी बात लेकिन l

बारिश में भीगो, परिंदों सा उड़ो, 

मिट्टी में उतरो नंगे पैर फिर से l

क्या जाने कब फूट जाये बुलबुला ये?


अरे, लेकिन को छोड़ो, काश को गोली मारो, 

ख़ुद से बात करो , फिर नई शुरुआत करो -2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

 
 
 

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें
पशु कौन?

वो होते हिंसक, सुरक्षा और भोजन के लिए, और हम… स्वाद के लिए, उनके शीश काटते जाते l वो होते काम-रत, ऋतु आने पर ही, और हम… सारा जीवन, काम में ही लुटाते जाते l वो जीते गोद में प्रकृति की, जीवन भर, और हम…

 
 
 
याद की जायदाद

कर-कर के देख लिया, हर क़रम,-2 कमा के देख लिया, गँवा के देख लिया, और पापों से तो सना हूँ मैं,-2 कुछ पुण्य, कमा के भी देख लिया l सब.. सब.. सब आ के चला जाता है, सब आ के चला जाता है l एक ‘उसकी याद’ है, क

 
 
 
श्मशान

कहते लोग, जिसे भयानक और अशुद्ध, जहाँ जाने के नाम से भी, हो जाती सांसें बद्ध l होते सभी बंधन जहाँ राख़, टूट जाती वृक्ष से ज्यों साख़, है यह वह स्थान, जहाँ माया भी है निषिद्ध l मरके तो सबको जाना है वहाँ

 
 
 

टिप्पणियां


bottom of page